गिरफ्तार मंत्रियों को हटाने वाला बिल: संसद में हंगामा और विपक्ष का कड़ा विरोध    

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गिरफ्तार मंत्रियों को हटाने वाला बिल: संसद में हंगामा और विपक्ष का कड़ा विरोध

गिरफ्तार मंत्रियों को हटाने वाला बिल: संसद में हंगामा और विपक्ष का कड़ा विरोध

नई दिल्ली: गिरफ्तार मंत्रियों को हटाने वाला बिल केंद्र सरकार ने बुधवार को लोकसभा में एक ऐतिहासिक और विवादित विधेयक पेश किया, जिसका उद्देश्य गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और अन्य केंद्रीय तथा राज्य मंत्रियों को उनके पद से हटाना है। यह केंद्रीय बिल 2025, जिसे केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने पेश किया, संसद में भारी हंगामे और विपक्ष के कड़े विरोध के बाद एक संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee) को सौंप दिया गया है। इस विधेयक को भारतीय राजनीति में एक बड़े सुधार के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन विपक्ष इसे सरकार द्वारा अपने विरोधियों को निशाना बनाने के हथियार के रूप में देख रहा है।

क्या है मंत्रियों को हटाने वाला बिल विधेयक?

यह विधेयक, जिसका नाम संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक, 2025 है, भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़कर यह कानूनी ढाँचा स्थापित करने का प्रस्ताव करता है कि यदि कोई भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, या मंत्री किसी गंभीर आपराधिक मामले में 30 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहता है, तो उसे तत्काल अपने पद से हटा दिया जाएगा। सरकार का तर्क है कि यह कदम राजनीति के अपराधीकरण को रोकने और सार्वजनिक जीवन में शुचिता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यह लोकसभा बिल केवल उन मामलों पर लागू होगा जहाँ आरोप गंभीर हों, न कि मामूली अपराधों पर। इसमें किसी भी तरह के भ्रष्टाचार, हत्या, या अन्य बड़े आपराधिक मुकदमों को शामिल किया गया है।

संसद में हंगामा और विपक्षी नेताओं का विरोध

जैसे ही गृह मंत्री अमित शाह ने यह विधेयक पेश किया, लोकसभा में हंगामा शुरू हो गया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने विधेयक की प्रतियों को फाड़कर गृह मंत्री की ओर फेंक दिया। विपक्षी सांसदों ने इसे ‘तानाशाही’ और ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ की संज्ञा दी।

कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने इस विधेयक पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार इसके पीछे अपनी राजनीतिक मंशा छिपाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह बिल केवल उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को निशाना बनाने के लिए लाया गया है, जहाँ विपक्ष की सरकार है। वहीं, एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस विधेयक को “पुलिस राज्य” की ओर एक कदम बताया और कहा कि यह संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है। उन्होंने कहा कि यह बिल उन निर्वाचित प्रतिनिधियों को कमजोर करेगा, जिन्हें जनता ने चुना है।

इस हंगामे के बीच, कानून मंत्री किरेन रिजिजू का बयान मंत्रियों पर आया, जिसमें उन्होंने सदन को शांत करने की अपील की और कहा कि विधेयक को बिना चर्चा के पास नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विपक्ष को इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए, बल्कि यह देश में राजनीतिक शुचिता लाने का एक प्रयास है।

विधेयक के पीछे की सरकार की मंशा

सरकार का कहना है कि यह विधेयक राजनीति में सुधार लाने के लिए एक ज़रूरी कदम है। पिछले कई दशकों से यह बहस चल रही है कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को मंत्री पद पर बैठने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे पर कई बार चिंता व्यक्त की है। सरकार का तर्क है कि यह विधेयक उसी दिशा में एक ठोस कदम है।

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, विधेयक लाने का मुख्य कारण यह है कि हाल के दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहाँ मंत्री पद पर बैठे हुए लोगों पर गंभीर आरोप लगे हैं, लेकिन वे पद पर बने हुए हैं। अधिकारी ने बताया कि यह विधेयक एक स्पष्ट संदेश देगा कि सत्ता में बैठे लोगों को भी कानून का पालन करना होगा और अगर उन पर गंभीर आरोप साबित होते हैं, तो उन्हें अपने पद से हटना होगा। यह विधेयक एक तरह से राजनीतिक सुधार की दिशा में एक बड़ा बदलाव है।

विपक्ष क्यों कर रहा है मंत्रियों के बिल का विरोध?

गिरफ्तार मंत्रियों को हटाने वाला बिल: संसद में हंगामा और विपक्ष का कड़ा विरोध

विपक्षी दलों का आरोप है कि यह विधेयक राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है। उनका मानना है कि सरकार इस कानून का दुरुपयोग उन मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के खिलाफ कर सकती है, जो उसकी विचारधारा से सहमत नहीं हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार ईडी, सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल पहले से ही अपने विरोधियों को परेशान करने के लिए कर रही है, और यह नया कानून उन्हें और भी ताकत देगा।

तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस विधेयक को “हिटलरवादी हमला” बताया और कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र पर एक बड़ा हमला है। उन्होंने कहा कि यह राज्यों की संघीय व्यवस्था को भी कमजोर करेगा और केंद्र को मनमानी शक्तियाँ देगा।

केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने हाल ही में लोकसभा में गिरफ्तार मंत्रियों को पद से हटाने का बिल पेश किया है, जिसे भारतीय राजनीति में संविधान संशोधन विधेयक 2025 के रूप में देखा जा रहा है। इस अमित शाह का मंत्रियों को लेकर नया विधेयक पर संसद में हंगामा जारी है, क्योंकि विपक्ष क्यों कर रहा है मंत्रियों के बिल का विरोध? और इसके दूरगामी प्रभावों पर बहस छिड़ गई है।

आगे क्या? संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया विधेयक

संसद में भारी हंगामे के बाद, यह तय किया गया कि विधेयक को एक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जाएगा। यह समिति विधेयक की बारीकी से जाँच करेगी और सभी दलों के विचार सुनने के बाद अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपेगी।

समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही विधेयक पर आगे की चर्चा होगी और फिर इसे मतदान के लिए रखा जाएगा। इस कदम से सरकार ने यह दिखाने की कोशिश की है कि वह सभी पक्षों की राय को महत्त्व देती है। हालाँकि, विधेयक के भविष्य को लेकर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है।

गिरफ्तार मंत्रियों को हटाने वाला बिल: संसद में हंगामा और विपक्ष का कड़ा विरोध

यह देखना बाकी है कि क्या यह विधेयक अपनी मूल रूप में पास हो पाएगा, या समिति इसमें कोई बड़ा बदलाव करेगी।

विश्लेषकों की राय

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विधेयक भारत में राजनीतिक सुधारों के लिए एक अहम कदम हो सकता है, लेकिन इसका दुरुपयोग रोकने के लिए कड़े प्रावधान होने चाहिए। अगर यह विधेयक बिना किसी संशोधन के पारित हो जाता है, तो यह देश में राजनीतिक माहौल को पूरी तरह से बदल सकता है। यह उन नेताओं के लिए एक चेतावनी भी होगी, जो अपराध के बावजूद सत्ता में बने रहने की कोशिश करते हैं।

निष्कर्ष : मंत्रियों को हटाने वाला बिल

मंत्रियों को हटाने वाला बिल

संसद में जारी हंगामा मंत्रियों को हटाने वाले बिल पर लगातार बढ़ रहा है। कानून मंत्री किरेन रिजिजू का बयान मंत्रियों पर देते हुए कहा कि यह गिरफ्तार मंत्रियों को पद से हटाने का बिल एक ज़रूरी भारतीय राजनीति सुधार है। लोकसभा में पेश हुआ नया बिल, यानी संविधान संशोधन विधेयक 2025, ने अमित शाह का मंत्रियों को लेकर नया विधेयक के रूप में एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है: विपक्ष क्यों कर रहा है मंत्रियों के बिल का विरोध?। यह विधेयक, जो केंद्रीय बिल 2025 के रूप में जाना जाता है, केंद्रीय मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में राजनीतिक शुचिता लाने का एक प्रयास है।

गिरफ्तार मंत्रियों को पद से हटाने का बिल भले ही नेक इरादों से लाया गया हो, लेकिन इसे लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। यह विधेयक लोकतंत्र में जवाबदेही और शुचिता के सवाल खड़े करता है, लेकिन साथ ही इसके संभावित दुरुपयोग को लेकर भी चिंताएं बनी हुई हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि संयुक्त संसदीय समिति में इसकी समीक्षा के बाद इसका क्या स्वरूप सामने आता है।

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