RBI Warning: 50% US टैरिफ से भारत की GDP ग्रोथ पर असर और आगे की राह
RBI Warning
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय दो विपरीत शक्तियों के बीच फंसी हुई है: एक ओर घरेलू मांग और हालिया जीएसटी सुधारों से मिल रहा मजबूत सहारा, तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका के 50% टैरिफ से उत्पन्न निर्यात का भारी संकट। इस आर्थिक द्वंद्व को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर ने अपनी हालिया मौद्रिक नीति समीक्षा (Monetary Policy Review) में उजागर किया है।
RBI की यह चेतावनी न केवल भारत के निर्यातकों के लिए एक खतरे की घंटी है, बल्कि यह लाखों नागरिकों को भी सीधे प्रभावित करती है। इस विस्तृत लेख में, हम RBI के प्रमुख विश्लेषणों को समझेंगे, 50% टैरिफ के कारण, अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव और भारत को इस चुनौतीपूर्ण दौर से कैसे निकलना चाहिए, इस पर गहन चर्चा करेंगे।
1. RBI की चिंता: टैरिफ ग्रोथ को कैसे धीमा करेगा?
RBI गवर्नर ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में स्पष्ट रूप से कहा है कि मौजूदा वैश्विक अनिश्चितताएँ और टैरिफ से संबंधित घटनाक्रम वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी छमाही (H2) और उसके बाद भारत की विकास दर (GDP Growth) को धीमा कर सकते हैं।
A. प्रमुख आर्थिक अनुमान
| तिमाही (Quarter) | पुराना अनुमान (Old Projection) | नया अनुमान (Revised Projection) | टैरिफ का प्रभाव |
| Q3 FY26 | 7.0% | 6.4% | सबसे बड़ी गिरावट |
| Q4 FY26 | 6.8% | 6.2% | विकास दर में कमी जारी |
| पूरा वर्ष FY26 | 6.5% | 6.8% (घरेलू मांग के कारण) | टैरिफ के बावजूद समग्र वृद्धि |
B. टैरिफ का सीधा असर
RBI ने साफ किया है कि GDP ग्रोथ के तिमाही अनुमानों में यह गिरावट मुख्य रूप से अमेरिका के 50% टैरिफ के अनुमानित प्रभाव के कारण आई है।
- निर्यात पर दबाव: टैरिफ भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाज़ार में 50% तक महंगा बना देते हैं। इससे निर्यातकों को भारी नुकसान हो रहा है, और विदेशी बाज़ार में मांग कम हो रही है।
- GST कटौती अपर्याप्त: गवर्नर ने माना कि हाल ही में लागू की गई GST दरों में कटौती (जो घरेलू मांग को बढ़ाएगी) 50% अमेरिकी टैरिफ के बाहरी झटके को पूरी तरह से संतुलित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।
- आगे की अनिश्चितता: RBI ने व्यापार नीति की अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों को ‘डाउनसाइड रिस्क’ बताया है, जिसका अर्थ है कि भविष्य में ग्रोथ अनुमान और भी नीचे जा सकते हैं।
2. टैरिफ संकट की जड़ें: 50% शुल्क का गणित
भारतीय निर्यात पर यह 50% का भारी शुल्क कैसे लगा, यह समझना महत्वपूर्ण है:
- आधारभूत टैरिफ (Baseline Tariff): अमेरिका ने पहले ही भारतीय सामानों पर लगभग 25% का एक आधार टैरिफ लगा रखा था, जिसे वह भारत के उच्च आयात शुल्क के जवाब में ‘पारस्परिक शुल्क’ (reciprocal tariff) कहता था।
- रूसी तेल पर दंडात्मक शुल्क: हाल ही में, अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद को लेकर नाराज़गी जताते हुए, 25% का एक और अतिरिक्त दंडात्मक टैरिफ लगा दिया।
- कुल टैरिफ: इन दोनों शुल्कों के जुड़ने से भारतीय निर्यातकों को कुल मिलाकर 50% तक का शुल्क चुकाना पड़ रहा है, जो दुनिया में सबसे ऊँचा टैरिफ है।

इस संकट से कपड़ा, रत्न और आभूषण, और यहां तक कि स्मार्टफोन निर्यात जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
3. आर्थिक लचीलापन: घरेलू सहारा और GST का असर
टैरिफ संकट के बावजूद, RBI ने भारतीय अर्थव्यवस्था में लचीलापन (resilience) बनाए रखने का विश्वास व्यक्त किया है। इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं:
- मजबूत घरेलू मांग (Domestic Demand): ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे मॉनसून और कृषि गतिविधियों में तेजी से घरेलू उपभोग (domestic consumption) मजबूत हुआ है।
- GST सुधारों का प्रोत्साहन: हाल ही में GST दरों में कटौती से उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें कम हुई हैं, जिससे नागरिकों के पास खर्च करने के लिए अधिक पैसा बचेगा और मांग बढ़ेगी। RBI ने स्पष्ट किया कि इसी घरेलू समर्थन के कारण ही पूरे वर्ष का GDP अनुमान 6.5% से बढ़ाकर 6.8% किया गया है।
4. RBI ने रेपो दर क्यों नहीं बदली?
टैरिफ के खतरे को देखते हुए, कुछ अर्थशास्त्रियों को उम्मीद थी कि RBI रेपो दर (Repo Rate) में कटौती करेगा। हालाँकि, MPC (मौद्रिक नीति समिति) ने दर को 5.5% पर अपरिवर्तित रखने का सर्वसम्मत निर्णय लिया।
- सतर्कता (Prudence): RBI का मानना है कि दर में कटौती से पहले, उन्हें टैरिफ के प्रभाव और GST कटौती के पूर्ण लाभ का बाजार में पूरी तरह से दिखाई देने का इंतजार करना चाहिए।
- मुद्रास्फीति नियंत्रण: भले ही मुख्य मुद्रास्फीति (Core Inflation) नियंत्रण में है, लेकिन RBI अभी भी किसी भी बाहरी झटके से उत्पन्न होने वाले मूल्य जोखिमों (price risks) को नियंत्रित करने के लिए सतर्क है।
5. भारत के लिए आगे की रणनीति
इस जटिल आर्थिक दौर से निकलने के लिए भारत को एक बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी:
- कूटनीतिक समाधान: वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अमेरिकी यात्रा जारी है। भारत को द्विपक्षीय व्यापार समझौते के माध्यम से इन टैरिफों को जल्द से जल्द हटाना होगा, खासकर उन क्षेत्रों के लिए जो सबसे अधिक रोज़गार प्रदान करते हैं।
- बाज़ार विविधीकरण (Market Diversification): अमेरिकी बाज़ार पर निर्भरता कम करने के लिए भारत को यूरोपीय संघ, ASEAN (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन), और मध्य पूर्व जैसे नए निर्यात बाज़ारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- निर्यातकों को समर्थन: सरकार को उन MSMEs (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों) को तरलता (liquidity) और वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए, जो 50% टैरिफ के कारण सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं।
- घरेलू उत्पादन पर जोर: ‘मेक इन इंडिया’ और PLI योजनाओं को और मजबूत करना चाहिए ताकि घरेलू उद्योग बाहरी व्यापारिक झटकों के प्रति अधिक प्रतिरोधी (resistant) बन सकें।
निष्कर्ष
RBI की नवीनतम मौद्रिक नीति समीक्षा भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों और उसकी अंतर्निहित शक्ति दोनों को दर्शाती है। GST कटौती से मिल रहे घरेलू प्रोत्साहन एक सकारात्मक संकेत हैं, लेकिन 50% अमेरिकी टैरिफ का निर्यात पर पड़ रहा असर गंभीर है।
यह वह समय है जब नीति-निर्माताओं को समझदारी और सावधानी से काम करना होगा। टैरिफ संकट के जल्द समाधान और घरेलू नवाचार को बढ़ावा देने से ही भारत अपनी GDP ग्रोथ की गति को बनाए रख पाएगा और 2025 की आर्थिक चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर पाएगा।